मणिकर्ण तीर्थ शिव मंदिर की कहानी (Manikaran Tirth Shiv Temple Story)
20 Jun 2024, 5:14 pm Devotional Sarvagna Mehta 664
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हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध तीर्थों में से एक मणिकर्ण धार्मिक एकता का प्रतीक माना जाता है। यहां पर पार्वती नाम की एक नदी बहती है, जिसके एक ओर शिव मंदिर है तो दूसरी ओर गुरु नानक देव का ऐतहासिक गुरुद्वारा।
नदी से जुड़े होने के कारण दोनों ही धार्मिक स्थलों का वातावरण बहुत ही सुंदर दिखाई पड़ता है। कहा जाता है इस स्थान पर क्रोधित हुए भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोला था। इसी स्थान पर दो गंगाओं ब्रह्म गंगा और पार्वती गंगा का संगम भी होता है। 




स्थानीय मान्यता और लोक कथा है कि भगवान शिव अपने विवाह के पश्चात एक बार शिवजी तथा पार्वतीजी घूमते-घूमते इस जगह पहुचे तो उन्हें यह जगह इतनी अच्छी लगी कि वे यहां ग्यारह हजार वर्ष तक निवास करते रहे।एक बार स्नान करते हुए माँ पार्वती के कान की मणि पानी मे गिर तेज धार के साथ पाताल पहुंच गयी। ऐसा होने पर भगवान शिव ने अपने गणों को मणि ढूंढने को कहा।
बहुत ढूंढने पर भी शिव-गणों को मणि नहीं मिली। इस बात से क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया। तीसरा नेत्र खुलते ही उनके नेत्रों से नयना देवी प्रकट हुईं। इसलिए, यह जगह नयना देवी की जन्म भूमि मानी जाती है। नयना देवी ने पाताल में जाकर शेषनाग से मणि लौटाने को कहा तो शेषनाग ने भगवान शिव को वह मणि भेंट कर दी।

शेषनाग में फुफकार से निकले करोड़ो मणियों की वजह से ही इस जगह का नाम “मणिकरण” पड़ा। इस जगह के लगाव के कारण ही भगवान शिव ने जब काशी की स्थापना की तो वहां भी नदी के घाट का नाम मणिकर्णिका घाट रक्खा। मणिकरण के इस क्षेत्र को अर्द्धनारीश्वर क्षेत्र भी कहते हैं। कहते हैं यह स्थान समस्त सिद्धीयों का देने वाला स्थान है।





इसी स्थान पर भगवान शिव का मंदिर है। कुल्लू के राजाओं ने भगवान राम का एक मंदिर भी बनवाया था जो रघुनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां भगवान कृष्ण एवं विष्णु के मंदिर भी हैं। यहाँ सिखों का एक गुरुद्वारा है जो इनके धार्मिक स्थलों में विशेष महत्व रखता है। यह मणिकर्ण साहिब गुरु नानकदेव की यहां की यात्रा की स्मृति में बनाया गया था। जनम सखी और ज्ञानी ज्ञान सिंह द्वारा लिखी तवारीख गुरु खालसा में इस बात का उल्लेख है कि गुरु नानक ने भाई मरदाना और पंच प्यारों के साथ यहां की यात्रा की थी। पंजाब से बडी़ संख्या में लोग श्रद्धा के साथ यहां आते हैं। पूरे वर्ष यहां दोनों समय लंगर चलता रहता है। यहां के यह पानी संधिशोथ और इसी तरह की कई बीमारियों में फायदेमंद मन जाता है। इस स्थान के धार्मिक महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कुल्लू घाटी के अधिकतर देवता समय-समय पर अपनी सवारी के साथ यहां आते रहते हैं।





मणिकर्ण में हरिंदर पहाड़ी, पार्वती नदी, शोजा, मलन कसोल, तोशघाटी और मलाना प्रसिद्ध दर्शनीय पर्यटक स्थल हैं। ब्रह्म गंगा, नारायणपुरी है, राकसट, 16000 मीटर की कठिन चढा़ई के बाद आने वाला सुंदर स्थल पुलगा, 22 किमी दूर 8000 फुट की ऊँचाई पर रुद्रनाथ, 25 किमी दूर10000 फुट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित खीरगंगा, 45 किमी. पर पांडव पुल दर्शनीय स्थल हैं। गर्मी में मणिकर्ण आने वाले रोमांच प्रेमी लगभग 115 किमी दूर मानतलाई तक चले जाते हैं। मानतलाई के लिए मणिकर्ण से तीन-चार दिन लग जाते हैं। सुनसान रास्ते के कारण खाने-पीने का सामान, दवाएं इत्यादि साथ ले जाना नितांत आवश्यक है। इस दुर्गम रास्ते पर मार्ग की पूरी जानकारी रखने वाले एक सही व्यक्ति को साथ होना बहुत आवश्यक है। पर्वतों से घिरी पूरी घाटी पर्वतारोहियों के लिये अच्छा अवसर प्रदान करती है।

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