श्राद्ध क्या है? ऐसा कहा जाता है के वर्ष के इस समय हमारे पितृ हमारे पास आते है और हम उनकी पूजा अर्चना और भोग लगाकर उनके आशीर्वाद पा सकते है।
कहा जाता है की जो परिवार सुखी सुखी अपना जीवन व्यतीत करना चाहता हो उस परिवार के लिए देवी देवता के साथ साथ पितृ का भी आशीर्वाद जरुरी है.
आईये जानते है कैसे करे पितृ पूजन इस श्राद्ध में और कैसे मिल सकता है उनका आशीर्वाद।
तर्पण विधि - सर्वप्रथम अपने पास शुद्ध जल, बैठने का आसन (कुशा का हो), बड़ी थाली या ताम्रण (ताम्बे की प्लेट), कच्चा दूध, गुलाब के फूल, फूल-माला, कुशा, सुपारी, जौ, काली तिल, जनेऊ आदि पास में रखे।
आसन पर बैठकर तीन बार आचमन करें।
ॐ केशवाय नम:,
ॐ माधवाय नम:, ॐ गोविन्दाय नम: बोलें।
आचमन के बाद हाथ धोकर अपने ऊपर जल छिड़के अर्थात् पवित्र होवें, फिर गायत्री मंत्र से शिखा बांधकर तिलक लगाकर कुशे की पवित्री (अंगूठी बनाकर) अनामिका अंगुली में पहन कर हाथ में जल, सुपारी, सिक्का, फूल लेकर निम्न संकल्प लें।
अपना नाम एवं गोत्र उच्चारण करें फिर बोले अथ् श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थ देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणम करिष्ये।।
फिर थाली या ताम्र पात्र में जल, कच्चा दूध, गुलाब की पंखुड़ी डाले, फिर हाथ में चावल लेकर देवता एवं ऋषियों का आह्वान करें। स्वयं पूर्व मुख करके बैठें, जनेऊ को रखें। कुशा के अग्रभाग को पूर्व की ओर रखें, देवतीर्थ से अर्थात् दाएं हाथ की अंगुलियों के अग्रभाग से तर्पण दें, इसी प्रकार ऋषियों को तर्पण दें।
फिर उत्तर मुख करके जनेऊ को कंठी करके (माला जैसी) पहने एवं पालकी लगाकर बैठे एवं दोनों हथेलियों के बीच से जल गिराकर दिव्य मनुष्य को तर्पण दें, इसके बाद दक्षिण मुख बैठकर, जनेऊ को दाहिने कंधे पर रखकर बाएं हाथ के नीचे ले जाए, थाली या ताम्र पात्र में काली तिल छोड़े फिर काली तिल हाथ में लेकर अपने पितरों का आह्वान करें।
ॐ आगच्छन्तु में पितर इमम ग्रहन्तु जलान्जलिम
फिर पितृ तीर्थ से अर्थात् अंगूठे और तर्जनी के मध्य भाग से तर्पण दें।
1. अपने गोत्र का उच्चारण करें एवं पिता का नाम लेकर तीन बार उनको तर्पण दें।
2. अपने गोत्र का उच्चारण करें, दादाजी (पितामह) का नाम लेकर तीन बार उनको तर्पण दें।
3. अपने गोत्र का उच्चारण करें पिताजी के दादाजी (प्रपितामह) का नाम लेकर तीन बार उनको तर्पण दें।
4. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करें, नाना का नाम लेकर उनको तीन बार तर्पण दें।
5. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करें नाना के पिताजी (पर नाना) का नाम लेकर तीन बार तर्पण दें।
6. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करें नाना के दादा (वृद्ध पर नाना) का नाम लेकर तीन बार तर्पण दें।
7. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करें नानी का नाम लेकर तीन बार तर्पण दें।
8. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करें नानाजी की मां (पर नानी) का नाम लेकर तीन बार तर्पण दें।
9. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करें नानाजी की दादी (वृद्ध पर नानी) का नाम लेकर तीन बार तर्पण दें।
10. अपने गोत्र का उच्चारण करें अपनी दिवंगत (जो स्वर्गवासी हो) पत्नी से लेकर परिवार के सभी दिवंगत सदस्य का नाम लेकर तीन-तीन बार तर्पण दें। परिवार के साथ-साथ दिवंगत बुआ, मामा, मौसी, मित्र एवं गुरु को भी तर्पण दें।
विशेष - जिनके नाम याद नहीं हो, तो रूद्र, विष्णु एवं ब्रह्मा जी का नाम उच्चारण कर लें। भगवान सूर्य को जल चढ़ाए। फिर कंडे पर गुड़-घी की धूप दें, धूप के बाद पांच भोग निकालें जो पंचबली कहलाती है।
1. गाय के लिए - पत्ते पर भोग लगाकर गाय को दें,
2. श्वान (कुत्ते) के लिए - जनेऊ को कंठी करके पत्ते पर भोग लगाकर कुत्ते को दें,
3. कौओं के लिए - पृथ्वी पर भोग लगाकर कौओं को दें,
4.(देवादिबली) देवताओं के लिए - पत्ते पर भोग अतिथि को दें,
5. पिपीलिका के लिए - पत्ते पर भोग लगाकर पिपीलिका को दें।
इसके बाद हाथ में जल लेकर ॐ विष्णवे नम: ॐ विष्णवे नम: ॐ विष्णवे नम: बोलकर यह कर्म भगवान विष्णु जी के चरणों में छोड़ दें। इस कर्म से आपके पितृ बहुत प्रसन्न होंगे एवं मनोरथ पूर्ण करेंगे।
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