गणेश अथर्वशीर्ष | Ganesh Atharvashirsha
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|| श्री गणपति अथर्वशीर्ष ||

ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि
त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1।।

हिंदी अर्थ - ॐकारापति भगवान श्री गणेश जी को मेरा प्रणाम है| हे गणेश जी ! आप ही केवल कर्ता है| आप ही केवल धर्ता है| आप ही केवल हर्ता है| निश्चयपूर्वक आप ही इन सभी रूपों में विराजमान ब्रह्म हो| आप साक्षात् नित्य आत्मस्वरूप हो|

ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।।

हिंदी अर्थ - मैं न्यायसंगत बात कहता हूँ| सत्य कहता हूँ|

अव त्व मां। अव वक्तारं।
अव श्रोतारं। अव दातारं।
अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं।
अव पश्चातात। अव पुरस्तात।
अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्।
अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।।
सर्वतो मां पाहि-पाहि समंतात्।।3।।

हिंदी अर्थ - हे पार्वती नंदन गणेश ! आप मुझ शिष्य की रक्षा करो| आचार्य की रक्षा करो| श्रोता की रक्षा करों| दाता की रक्षा करो| धाता की रक्षा करो| व्याख्या करने वाले गुरु की रक्षा करो| शिष्य की रक्षा करो| पूर्व से रक्षा करो| पश्चिम से रक्षा करो| उत्तर से रक्षा करो| दक्षिण से रक्षा करो| चारों ओर से मेरी रक्षा करो| सभी ओर से मेरी रक्षा करो|


त्वं वाङ्‍मयस्त्वं चिन्मय:।
त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:।
त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽषि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्माषि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽषि।।4।।

हिंदी अर्थ - तुम वाङ्मय हो, चिन्मय हो| तुम आनंदमय हो| तुम ब्रह्ममय हो| तुम ही सच्चिदानंद अद्वितीय हो| तुम प्रत्यक्ष ब्रह्म हो| तुम ही दानमय विज्ञानमय हो|

सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:।
त्वं चत्वारिकाकूपदानि।।5।।

हिंदी अर्थ - यह संसार आपसे ही उत्पन्न होता है| यह सम्पूर्ण जगत तुममे लय को प्राप्त होगा| इस सारे जगत की आप में प्रतीति हो रही है| आप जल, भूमि, अग्नि, आकाश और वायु हो| परा, बैखरी एवं मध्यमा वाणी के ये विभाग तुम्ही हो|

त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं
रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं
ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।।

हिंदी अर्थ - आप रज, सत्व एवं तम तीनों गुणों से परे हो| तुम जागृत, सुषुप्ति एवं स्वप्न तीनों अवस्थाओं से परे हो| तुम वर्तमान, सूक्ष्म और स्थूल तीनों देहों से परे हो| तुम भूत, वर्तमान एवं भविष्य तीनों कालों से परे हो| तुम मूलाधार चक्र में सदा स्थित रहते हो| क्रिया, इच्छा और ज्ञान तीनों प्रकार की शक्तियां आप ही हो| सभी योगीजन नित्य आपका ध्यान करते है| तुम ब्रह्मा हो, तुम विष्णु हो, तुम रूद्र हो, तुम इंद्र हो, तुम अग्नि हो, तुम सूर्य हो, तुम वायु हो,तुम ब्रह्म हो, तुम चंद्रमा हो, भू:, भूर्व:, स्व: हो|

गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।
अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं।
तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं।
गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं।
नाद: संधानं। सँ हितासंधि:
सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि:
निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता।
ॐ गं गणपतये नम:।।7।।

हिंदी अर्थ - गण के आदि अर्थात “ग” का पहले उच्चारण करे| उसके बाद में वर्णों में प्रथम वर्ण “अ” का उच्चारण करे| इस प्रकार से अर्धचन्द्र से सुशोभित ‘गं’ ॐ उच्चारण से अवरुद्ध होने पर आपके बीज मंत्र (ॐ गं) का ही स्वरुप है| गकार इसका पूर्ण रूप है| बिंदु उत्तर रूप है| नाद संधान है| संहिता संविध है| ऐसी यह गणेश विद्या है| इस महामंत्र के गणक ऋषि है| वह महामंत्र – ॐ गं गणपतये नमः है|

एकदंताय विद्‍महे।
वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दंती प्रचोदयात।।8।।

हिंदी अर्थ - एक दंत को हम जानते है| वक्रतुंड का हम ध्यान करते है| वह गजानन हमे प्रेरणा प्रदान करें|

एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्।
रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्।
रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।
रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।।
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्।
आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृ‍ते पुरुषात्परम्।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।।9।।

हिंदी अर्थ - एकदंत चतुर्भुज अपनी चारों भुजाओं में पाक्ष, अंकुश, अभय और वरदान की मुद्रा धारण किये हुए है| मूषक चिन्ह ध्वजा लिए हुए, रक्तवर्ण लम्बोदर वाले सूप जैसे-जैसे बड़े कानों वाले रक्त वस्त्रधारी शरीर पर चंदन का लेप किये हुए रक्तपुष्पों से पूजित| भक्त पर अनुकम्पा करने वाले देवता, जगत के कारण अच्युत, पुरुष से परे श्रीगणेशजी का जो नित्य ध्यान करता है, वह योगी सभी में श्रेष्ठ है|

नमो व्रातपतये। नमो गणपतये।
नम: प्रमथपतये।
नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय।
विघ्ननाशिने शिवसुताय।
श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।।10।।

हिंदी अर्थ - देव समूह के नायक को नमस्कार| गणपति जी को नमस्कार| शिवजी के गणों के अधिनायक को नमस्कार| एकदंत, लम्बोदर, शिवजी के पुत्र एवं श्री वरदमूर्ति को मेरा नमस्कार|


एतदथर्वशीर्ष योऽधीते।
स ब्रह्मभूयाय कल्पते।
स सर्व विघ्नैर्नबाध्यते।
स सर्वत: सुखमेधते।
स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते।।11।।

हिंदी अर्थ - यह अथर्ववेद का उपनिषद है| इसका पाठ जो भी करता है वह ब्रह्म को प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता है| किसी भी प्रकार के विघ्न उसके लिए बाधक साबित नहीं होते है| वह हर जगह सुख ही पाता है| वह पांच प्रकार के पातकों एवं उपपातको से मुक्त हो जाता है|

सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।
सायंप्रात: प्रयुंजानोऽपापो भवति।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।
धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति।।12।।

हिंदी अर्थ - सायंकाल पाठ करने वाला दिन के पापों का नाश करता है| प्रात:काल इसका पाठ करने से रात्रि के पापों का नाश होता है| जो दोनों समय इसका जाप करता है| वह मनुष्य निष्पाप हो जाता है| वह सर्वत्र विघ्नों का नाश करता है| वह धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष को प्राप्त करता है|

इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम्।
यो यदि मोहाद्‍दास्यति स पापीयान् भवति।
सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्।13।।

हिंदी अर्थ - इस अथर्वशीर्ष को जो शिष्य न हो उसे देना चाहिए| जो मोह के कारण देता हो, वह पातकी हो जाता है| इस पाठ का एक हज़ार बार जाप करने से मनुष्य अपनी प्रत्येक कामना को सिद्ध कर सकता है|

अनेन गणपतिमभिषिंचति
स वाग्मी भवति
चतुर्थ्यामनश्र्नन जपति
स विद्यावान भवति।
इत्यथर्वणवाक्यं।
ब्रह्माद्यावरणं विद्यात्
न बिभेति कदाचनेति।।14।।

हिंदी अर्थ - इसके द्वारा जो भी गणपति जी को स्नान कराता है, वह वक्ता बन जाता है| जो मनुष्य चतुर्थी तिथि को व्रत करके इसका जाप करता है, वह विद्यावान हो जाता है| यह अथर्व वाक्य है जो इस मंत्र के द्वारा तपश्चरण करना जानता है, वह कभी भी भयभीत नहीं होता है|

यो दूर्वांकुरैंर्यजति
स वैश्रवणोपमो भवति।
यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति
स मेधावान भवति।
यो मोदकसहस्रेण यजति
स वाञ्छित फलमवाप्रोति।
य: साज्यसमिद्भिर्यजति
स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।15।।

हिंदी अर्थ - जो भी व्यक्ति भगवान गणेश जी का यजन करता है, वह कुबेर के समान हो जाता है| जो लाजो के द्वारा यजन करता है, वह यशस्वी तथा मेधावी होता है| जो हज़ार लड्डुओं के द्वारा यजन करता है| उसे मन वांछित फल की प्राप्ति होती है| जो घृत के साथ समिधा से यज्ञ करता है, उसे सब कुछ प्राप्त होता है|

अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा
सूर्यवर्चस्वी भवति।
सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ
वा जप्त्वा सिद्धमंत्रों भवति।
महाविघ्नात्प्रमुच्यते।
महादोषात्प्रमुच्यते।
महापापात् प्रमुच्यते।
स सर्वविद्भवति से सर्वविद्भवति।
य एवं वेद इत्युपनिषद्‍।।16।।

हिंदी अर्थ - आठ ब्राह्मणों को सम्यक रीति से ग्राह कराने पर सूर्य की भांति तेजस्वी होता है| सूर्य ग्रहण के समय महानदी में या प्रतिमा के समीप जपने से मंत्र की सिद्धि होती है| वह महाविघ्न से मुक्त हो जाता है| जो इस प्रकार जानता है वह सर्वज्ञ हो जाता है|

|| अथर्ववेदीय गणपतिउपनिषद समाप्त ||

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