Why Holi is celebrated? (होली क्यों मनाई जाती है?)
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होली रंगों का त्योहार है। यह प्रायः पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है। प्रकृति भी एक तरह से इस त्योहार में सम्मिलित होती है। चारों ओर रंग बिरंगे फूल बिखेर कर बसंत ऋतु खुशियां लुटाती है। यह त्योहार मौसम और रंगों के अनुकूल होता है।

होली का त्योहार फाल्गुन की पूर्णमासी को मनाया जाता है। इसी कारण इसे फाग भी कहते हैं। पूर्णमासी से एक दिन पहले रात को लोग होली जलाते हैं और उसमें गेहूं की बालें तथा चने के छोले भुनते हैं। वातावरण में मस्ती फैली रहती है। रंगों और संगीत का उन्माद लोगों को उत्साह और उमंग से भर देता है।होली को लेकर हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका की कथा  अत्यधिक प्रचलित है।

प्राचीन काल में अत्याचारी राक्षसराज हिरण्यकश्यप ने तपस्या करके ब्रह्मा से वरदान पा लिया कि संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे न मार सके। न ही वह रात में मरे, न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर में, न बाहर। यहां तक कि कोई शस्त्र भी उसे न मार पाए।

ऐसा वरदान पाकर वह अत्यंत निरंकुश बन बैठा। जो चाहता था- सभी उसे भगवान मानकर उसकी पूजा करें। हिरण्यकश्यप के यहां प्रहलाद जैसा परमात्मा में अटूट विश्वास करने वाला भक्त पुत्र पैदा हुआ। प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उस पर भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि थी।

हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को आदेश दिया कि वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति न करे। प्रह्लाद के न मानने पर हिरण्यकश्यप उसे जान से मारने पर उतारू हो गया। बहुत समझाने पर भी वह नहीं समझा तो उसने प्रह्लाद को मारने के अनेक उपाय किए लेकिन व प्रभु-कृपा से बचता रहा।


हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान था। उसको वरदान में एक ऐसी चादर मिली हुई थी जो आग में नहीं जलती थी। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की सहायता से प्रहलाद को आग में जलाकर मारने की योजना बनाई।

होलिका बालक प्रहलाद को गोद में उठा जलाकर मारने के उद्देश्य से वरदान वाली चादर ओढ़ धूं-धू करती आग में  जा बैठी। प्रभु-कृपा से वह चादर वायु के वेग से उड़कर बालक  प्रह्लाद पर जा पड़ी और चादर न होने पर होलिका जल कर वहीं भस्म हो गई।  इस प्रकार प्रह्लाद को मारने के प्रयास में  होलिका की मृत्यु हो गई।

तभी से होली का त्योहार मनाया जाने लगा। 

तत्पश्चात् हिरण्यकश्यप को मारने के लिए भगवान विष्णु नरंसिंह अवतार में  खंभे से निकल कर गोधूली समय (सुबह और शाम के समय का संधिकाल) में दरवाजे की चौखट पर बैठकर अत्याचारी हिरण्यकश्यप को मार डाला।

होली के अवसर पर किसानों की फसल पक जाती है अतः लहलहाती फसलें देखकर वे खुशी से झूम उठते हैं और आग में अनाज की बालों को भूनकर खाते एवं खिलाते हैं।

अगले दिन सुबह अर्थात दुलहंडी के दिन होली खेली जाती है। सब लोग वैर विरोध भूल कर एक दूसरे के गले मिलते हैं, मिठाइयां खाते और खिलाते हैं तथा प्यार के रंगों में रंग जाते हैं। सभी एक दूसरे पर रंग डालते और गुलाल मलते हैं। रंगों से सराबोर लोगों को हंसते गाते देखकर हर व्यक्ति होली के रंग में रंग जाता है। गुंजिया और तरह तरह की मिठाइयों से वातावरण में मिठास घुल जाती है।

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